जिन्गिक सफर

"एक राट मे अपन मुटुक टुक्रा पहिलो मैयक चिन्हा प्रेमके बच्चाहे हुकिन अर्पण करके निकरजिम अपन जिन्डगिक खोजमे जहाँ पुगाई जिन्डगीक डगर अपन यात्रा शुरु करम । अगर मिलजाइ कौनो घर ओ केक्रो साहारा उहि अपन जिन्गीक बसेरा बनैम कैक सोच बनैनु । ओ अपन डाइ बाबनके घरक डुवार मसे अपन पैला निकर्नु ओ कोनम बच्चा लेके अपन छाटिम चप्टाके आँखिमसे आँस नै रुकटहे अपन मुटुक टुक्राहे अपन छाटिमसे छुटाके फेकाइलहस प्रेमके घरक डुवारमे छोरके जाइटहुँ ।


जिन्गिक सफर


कहानि यहाँ से सुरुहुइट्

जेठके जरेहस लग्ना घाम । बयाल ओ ढुर बराबर औरे हस चलट । गल्ली मनिक डुब्बा घाँस फेन सुखाके चुरचुर होरहट । टाटुल भौगरहस ढुर । उहे जरेहस लग्ना घामेम उहे टाटुल भौगरहस ढुरिमे अपन पैला चप्प–चप्प ढर्टी नेगल करटहिन कुमारी । टाटुल ढुरिम नेङ्गे नै सक्के सुखाइल घाँसे घाँसे नेङ्गे खोजीन । सुख्खा ढर्टी, टाटुल बयालके सँगे ढुर फेन उहे मेर उरट । ढुरेकिल कपार, सुखाइल सुखाइल ढेबर उहे फेन सुखाके फाटल रहिन कुमारीके । जाने कै डिनके भुखाइल रहिन कुमारी । मन मरल भुखेले पेट पैंठल रठिन । केकरो साठ ओ बसेराके खोजीमे निकरल बेसाहारा यात्री रही । कहाँ पुग्ना हो कोइ पटा नैहिन । ढुरेकिल शरीर, डेख्नामे बौरही हो कना फेन करिन । टर कुमारी बौरहिया नैहिन । 


जिन्गिक सफर


कुमारी डगरके किनार रहल छोटमोट झंगली टिर बैठके घुम-घुमके इन्ड्र के ओर हेर्टी रहनि । जेकर टेकर मुहमहे सुन मिलट एकठो बोरही आइल बा । इन्ड्र अपन घरक अंगनामेसे कुमारीहे हेर्टि रहिट । कुमारीहे डेख्के इन्ड्र हे डया लग्ठिन ओ अपन पैला कुमारी बैठलक ठाउँ ओर सर्ठै । कुमारी एक औरे इन्ड्र हे हेर्टी रठी । आँखीमसे आँस गिराइ टहिन । इन्ड्र कुमारीक लग्गे जाके हुकिनसे बोल्ना प्रयास कर्ठै । इन्ड्र कठैं सुनि टे... कुमारी इन्ड्रके अनुहार हेर्टी कलिन । हजुर... जब कुमारी अत्रा मजासे बोल्ली इन्ड्रहे लग्लिन यि बौरही हुई नै सेकही मनै खाली बौरही कहिके हल्ला फैलैले बटैं । मजै मनैन सबजे बौरही कलेसे किहि मजा लागी । विचारी कुमारी मनक पिर बिना बुझल सबजे बौरही बटाडिन । कत्रा डुःखल हुहिन हुँकार मन । 


मनैन हे बिगर्ना समाज हो सपरैना फेन समाज । विचारी कुमारी हे समाज के नजरमे बौरही रहिन जे जस्टे सुने ओस्टे डेखे लागे । हुइना फेन हो जस्टे सुन्ठैं मनै ओस्टे डेखे लग्ठै । 


कुमारी के नरम, मढुर, डुखी आवाजसे इन्ड्रहे डया लागे पुग्ठिन । कुमारीक बारेम जन्नास लग्ठिन । इन्ड्र कुमारीके सामु बैठके हुँकार पिडा बुझना शुरु कर्ठै । एक घचिक टे उ टरे मुन्टि लगाके सुस्कर सुस्कर रोइली । नाउँ ठेगाना घर डुवार पुछे बेर । कुमारी रोइने बोल्ने कर्ठि कहाँ बटाउ अपन घर जबकी घर डुवार सारा उजरगिल । कहाँ सम्म बटाडिउ अपन जिन्डगीक सफर जब कि मोर डगरके अन्ट नै हो । कसिक बटाउ अपन हाल खबर जबकी घृणा बडनाम ओ ठुकाइ के कमि नै हो । कसिक सुनाउ अपन फुटल हृडयके डुखाइ सहे नै सेक्ना हो । मनक भित्रे भित्रे चिल्लाई पुग्ठु । कसिके सुनाउ अपन आँसके कहानी जोन एक एक आँसक बंडामे मोर मनक पिडा छुपल बा । यि जिन्डगी यात्रा मे कोइ नै हो मोर जिन्डगीक पीडा सुनडेहुया । 


डाडा आज अप्ने हे डेख्के असिन लगटा कोइ बा मोर मनक बाट बुझइया । सब जे महि डेख्के डुरेसे खरकके जैठैं । ओइन्के हेराई घृणासे भरल रठिन । बौरही हो कहिके कोइ मोर लग्गे नै आइट । ना टे कोइ मजासे बोलट ना टे कोइ खैना पुछट । कुक्कुर जस्टे सम्झठै टर डाडा मै पागल निहु । मोहि डेख्के बौरहिया  सम्झठै । कसिक कहुँ मै पागल निहुँ । मोर बाट कोइ सुन्ना नै चाहट । पागलके बाट का सुन्ना कैक अपन डगर लाग्जैठा । 


कुमारीके बाट से इन्ड्रके आँखी रसाई पुग्ठिन । मन पिघल जैठिन । कुमारी अपन मनक बाट आघे सुनैटि जैठी । डाडा मै अप्न आप से ढोखा खाइल बटु । मै अप्ने आपहे लुटैनु । मै एक जहन भरोसा कर्नु । टर उ मोर जिन्डगीसे खेलल । उ मोर जिन्डगी हे टहस नहस पार डेहल । मै जिन्डगी मे भारी लक्ष्य बोक्ले रहुँ । टर मोर सारा कुछ खटम करडेहल । कुमारी अपन जिन्डगीके कहानी सुनैना शुरु कर्ठि । इन्ड्र हुँकार डुःख डर्ड भरल आवाज सुन्टि रठै ।


डाडा मै भारी लक्ष्य बोक्के नेगल रहुँ । अपन डाइ बाबाके नामी छाइ बनके डेखैम । अपन डाइ बाबा, गाउ ठाउँ ओ डेश के नाउँ उठैम । जिन्डगीमे कुछ करके डेखैना मोर लक्ष्य रहे । पह्राइ मे खेलकुडमे बहुट रुचि रहे मोर । साइकिल के यात्रा करके स्कुल जाउ । हर खेलकुडमे भाग लेडारु । पह्राइमे खेल कुडमे सबसे आघे रहुँ । सबजे प्रशंसा करिट । बहुट जे संघरियाके बन्लैं । कत्राजे जिवन संघरियाके लाग प्रस्टाव ढर्ला टर मे अपन लक्ष्य पूरा नै हुइटसम संघरिया बाहेक कौनो उत्तर नै डेनु ।


प्रेम मोर बरे मिल्ना संघरिया रहिट । मोर हर काममे साठ डेना । कै पल्ट टे प्रेम फेन महिसे जीवन संघरियाके प्रस्टाव ढर्लै टर मै केवल संघरियाके नाटासे हेर्ना । टर ढिरढिरे प्रेम प्रटि मैया लटपटैटि गैल । प्रेमके साठ सहयोग हरडम मिल्टि गैल । प्रेम बिना जिन्डगी अढुरा लागे लागल । सुनसान लागे, नेग्लक, बटओइलक बानी अकेली रहे नै सेक्जाए । 


संघर्या फेन बहर्लै ओ बहुट जे मोर पर व्यक्तिगट रिस ढार्के मोर बडनाम कर्ना प्रयास कर्लै । महिसे प्रेमके नाटक कर्के फसैना प्रयास कर्लै । टर मै प्रेमहे मै अपन मन डेसेक्ले रहुँ । प्रेमके एक-एक शब्ड मोर कानेम गुञ्जे ओ मन छुजाए । प्रेमके उ शब्ड “कुमारी यि ज्यान टुँहार मैयामे अर्पण करडेम । चाहे मै टुँहार हुइ नापाउ । जात्ति से कुमारी यि जिन्डगी भर टुँहार गुलाम बनडेम चाहे टुहाँर हुइ नापाउ । जिन्डगी भर टुँहार सेवा करम । महि अपन डिलमे ठाउँ नै डेलेसे फेन । एकपल महि समझ डेलेसे पुगजाई । प्रेमके एक–एक शब्डसे मोर मन छु जाए । पटा नै पैनु कबअ पन मन डेसेकल रहुँ । यी सब बाट प्रेमसे छुपैले रहुँ कि मे प्रेम हे चाहे लागल रहुँ ।


प्रेम डिवसके डिन रह । प्रेम जोरी हुँक्रे अपन मैया एक डोसरसे साँटिक साँटा कर्ठै । उ डिन हम्रे फेन भेट कर्ना चहली । उहे बेला मै अपन चोखा मैया अपन जिन्डगी प्रेम हे सोप्नु । बहुट खुशीके डिन रहे । हमार लाग यि डुनियाँ बहुट सुन्डर बनगैल रहे । हम्रे एक डोसरसे बहुट खुशी रही । काम काज पह्राई चल्टी रहे । प्रेम हे मै अपन जिन्गि सोप सेकल रहुँ । जिन्डगी भर साठ नै छोर्ना बाचा रहे हमार । 


एक डिन अचानक मोर डुर्घटना हुइ पुगल । ओ कपारिम चोट लागे पुगल जेकर कारण मोर डिमाक काम कर्ना छोरडेहल । महि कुछ पटा नै हुइल अचानक गारीमे लरे पुग्नु अत्रे पटा बा । अस्पटालमे जाके मोर होस खुलल् उ बेला रोर शरिर के कुछ अंग काम नै करतहे । महि सपना जस्टे फेन लागटहे तर सब हकिकट रहे । मोर एक पाजरके सारा हंग लुल होगैल रहे । मोर अाँस भलभल भलभल निकरे लागल बोल्ना फेन सम्या रहे । अरोट करोट लेना लेना फेन सम्स्या । महिनौं पाछे ठोर ठोर  उठ्ना बैठ्ना हुइनु मने ओरे जहनके सहारा से । 


प्रम हेर चाह कर्टि गिलै । कुछ महिना पाछे महि महि होयल चेयर डेगैल । उहे मोर यात्रा रहे । घुम्नास लागर ठाउँ हेर्नास लागे सिट्टर हावा मे घुम्नास लागे टे प्रेम घुमैना करिट । हमार घुम घाम करम मे प्रेमसे बाटछछिट् करि । एकठो डुखके बाट मै डाइ बने नै सेक्ना होगैल रहुँ । मोर खुसीके संगे प्रेम के खुसी फेन हेरागिल रहिन । मोर कोखके सन्तान डेखे नै पैना होगिल रहि । 



डिन हमार अस्टे चल्टि रहे । प्रेम महि से समय कम डेहे लग्लै । ओ बरे राट पाछे घरे आइ लग्लै । महिसे बहुट बाट छुपाइ लग्लै । मै इ सब डेख्के अपन जिन्गिक भाग्य हे डोस लगाके रोउ । 


टब प्रेमके याड आइल ओ प्रेम हे खोजे लग्नु । टर मोर उ शब्डसे प्रेम महिसे बहुट डुर होगैल रहिट । जोन हमार नाटा रहे उ टुट सेकल रहे । कारणमे बेहोशमे बोलल शब्डसे प्रेमके डिलमे चोट लगाइ पुगल रहुँ । प्रेमहे मै अस्विकार कर्नु हुन । मै खुड नाटा टुर्नु हुन । मोर कारण प्रेम महिसे डुर होसेकल रहिट । जब प्रेमसे बिटाइल पल, उ मैया महि टडपाई लागल टे प्रेमसे भेट कर्ना चहनु टर प्रेम उ नाटासे नाहि केवल संघरियाके नाटासे भेट कर्ना चहलैं । 


कारण प्रेम जिन्डगीमे कोइ औरे जीवन संघरिया आगैल रहिन । एक सुग्घर परिवार रहिन । यि सब सुनके मोर सारा मन टुटगिल । रोइनु चिल्लैनु । अपन जिन्डगी हे ढिक्कर्नु । अपन बिटल पलहे समझके रोइनु  । असिन लागे महि जिन्डगी असिन ढोखा डेहल कि भाग्य अपन बुझे नै सेक्नु । समय असिक बडलगिल कि कुछ सोंचे नैसेक्नु । कुछ महिना पाछे पटा चलल कि मोर पेटमे प्रेमके बच्चा बा । यि बाट जानके मोर जिन्डगी सारा उजरल सम्झनु । मोर गल्टी कहु कि भाग्य । मोर गल्टी कहु कि भाग्य या प्रेमके गल्टी कहुँ । मैया मोर जिन्डगीसे छलकरल । मै अपन सारा डिलसे प्रेम हे अपन मान सेकल रहुँ । ओ अप्ने आप हे अर्पण करडेनु । जिन्डगी भर साठ नै छुटना बाचा रहे टर पल भरमे जिन्डगी बडल गैल । 


पेटमे हमार मैयाके चिन्हा हुर्कटी गैल । मै निर्डोस बच्चाहे अपन गल्टीके कारण हटया कर्ना नै चहनु । संसार डेखैना चहनु । ओ हुँकार बच्चा, हुकिन अर्पण करडेम मै प्रेमके हुई नैपैलेसे फेन उ बच्चा जरुर बाबक घरेम हक पाइ कैक प्रेमके बच्चा हे जन्म डेना निर्णय कर्नु । डाइ बाबाके घरेम रहके पेटके बच्चाहे हुर्कैनु । ओ जन्म डेनु । बच्चा सुन्डर रहे । प्रेमके लाग छावा जन्माडेनु । बच्चाहे अपन छाटीक डूढ चुसाके ममटाके पहिलो मैया डेनु । मै अपन जिन्डगीके यात्राहे सम्झनु मोर आघे पाछे कोइनै रहे । सबजे बौरही नाउँसे जाने लग्लै । यी बाटसे महि अप्ने आपहे समाजसे घृणा लागे लागल । अप्ने आपहे कौन डुनियाँ मे लैजाउ । कहाँ जाके जिउ कैसिक रहुँ यि स्वार्ठी समाजमे कैक राट आँसके सँग निडैना करु । प्रेमके डिलमे मोर लग ठाउँ नै रहिन । कारण हुँकार एकठो जीवन संघरिया रहिन । महि कुछ समझ नै आए । बच्चाके भविष्य हेरु या अपन । प्रेमके साठ खोजु कलेसे उहाँ मोर कौनौ अढिकार नैरहे ।


एक राट मे अपन मुटुक टुक्रा पहिलो मैयक चिन्हा प्रेमके बच्चाहे हुकिन अर्पण करके निकरजिम अपन जिन्डगिक खोजमे जहाँ पुगाई जिन्डगीक डगर अपन यात्रा शुरु करम । अगर मिलजाइ कौनो घर ओ केक्रो साहारा उहि अपन जिन्गीक बसेरा बनैम कैक सोच बनैनु । ओ अपन डाइ बाबनके घरक डुवार मसे अपन पैला निकर्नु ओ कोनम बच्चा लेके अपन छाटिम चप्टाके आँखिमसे आँस नै रुकटहे अपन मुटुक टुक्राहे अपन छाटिमसे छुटाके फेकाइलहस प्रेमके घरक डुवारमे छोरके जाइटहुँ । डाइ बाबा के हो कुछ पटा नै रहल बच्चाहे प्रेमहे अर्पण करके प्रेमके जिन्डगीसे सडाके लाग डुर जाइटहु । सेक नै सेक निर्डोस अन्जान बच्चाहे सुनसान राटमे प्रेमके घरक डुवारके आघे छोेर्के एकठो चिठी लिख्के उहाँसे निकर गैनु । चाहके फेन प्रेमके हुइ नैपैनु । नैचाहके फेन मोर मुटुक टुक्रा निर्डोस बच्चा हे छोरके नेगेपरल । कटि कुमारी इन्ड्रके अनुहारमे हेर्टि रही । आँखीमे आँस भरके पल्कामसे टप टप गिर टहिन । 


कोइ नै बुझले हे कुमारीके मनक पिडा । नाटे कोइ पुछले रहे हुँकार घर डुवार । ना कोइ जाने चहले रहे हुँकार जिन्डगीके असर । केवल हाँस टहे कुमारीहे डेख्के समाज । घृणा करटहे ठुक टहे । बौरहीके नाउँ डेलै रहे । यि सब सहके कुमारी अपन जिन्डगीक यात्रामे निक्रल रठी । केक्रो सहाराके खोजीमे । एकठो जिन्डगीके बसेरा घरके खोजीमे निक्रल रठि । कुमारी सुस्कर सुस्कर रोइठी ओ आँस पोछके उठके जाइलग्ठी । उहेबोला इन्ड्र अपन हाँठ नफाके कुमारी के उ नरम आँसले भिजल हाँठ पकरके रोक्लै । इन्ड्रके आँखीमे आँख मिलाके मैया भरल नजरले हेर्ली कुमारी । इन्ड्र कठैं कुमारी मै डेम टुहिन साठ । ओ टुहिन अपन डिलमे बास डेम । जहाँसम चली मोर सास । कुमारी टुँ राजी बटो कलेसे चलो मोरसँग कैक इन्ड्र कलै । कुमारी ढिरेसे कपार हिलैली ओ इन्ड्रके सँग हुँकार घर जैना टयार हुइली । असिके इन्ड्र ओ कुमारी एक डोसर हे साठ डेना बाचा करके । एक डोसरहे अप्ने आपहे अर्पण करडेठैं । ओराइल ।


संगम चौधरी.....✍️

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